Friday, January 11, 2008

जान भर रहे जंगल में

नागार्जुन जिनका वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र है. सन 1911 ई. में जिला दरभंगा के सतलखा गाँव में जन्में. 1936 में श्री लंका जाकर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली. 1938 में अपने देश लौटे. नागा बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुए. घुमक्कड़ फक्कड़ किस्म के व्यक्ति थे. नवम्बर 1998 में स्वर्ग सिधारे.
'जान भर रहे जंगल में' कविता पढ़कर मन का जुगनु जगमग करने लगता है.

गीली भादों
रैन अमावस...
कैसे ये नीलम उजास के
अच्छत छींट रहे जंगल में
कितना अद्भुत योगदान है
इनका भी वर्षा-मंगल में
लगता है ये ही जीतेंगे
शक्ति प्रदर्शन के दंगल में
लाख लाख हैं, सौ हज़ार हैं
कौन गिनेगा, बेशुमार हैं
मिल-जुलकर दिप-दिप करते हैं
कौन कहेगा, जल मरते हैं...
जान भर रहे हैं जंगल में

जुगनु हैं ये स्वयं प्रकाशी
पल-पल भास्वर पल-पल नाशी
कैसा अद्भुत योगदान है
इनका भी वर्षा-मंगल में
इनकी विजय सुनिश्चित ही है
तिमिर तीर्थ वाले दंगल में
इन्हें न तुम बेचारे कहना
अजी यही तो ज्योति-कीट हैं
जान भर रहे हैं जंगल में
गीली भादों
रैन अमावस...

1 comment:

Kavita Vachaknavee said...

बाबा की क्रान्तिकारिता कबीर की परम्परा में परिगणित होती है.
बधाई!