Tuesday, March 22, 2011

एक नई शुरुआत के साथ ...

रुके रुके से कदम फिर से चलने लगे..... 2008 के बाद फिर से एक नई शुरुआत के साथ .... श्री नरेन्द्र लाहड़ जी की लिखी हुई पुस्तक 'सूर्य उवाच' के छोटे छोटे अंश जो दिल को छू गए उन्हें पोस्ट करने का विचार है.....

आत्मावलोकन ------

" मैं हूँ मानव और
मानवता का ही वर दीजिए
मैं जिऊँ औरों को भी
जीने दूँ , सहज कर दीजिए .

प्रकृति का , हर एक
अवयव औरों को देता सदा.
ज्ञानमय आलोक देते,
आप भी सबको सदा.

धरती माँ भी अन्न के
भंडार भरती है सदा.
जल का पावन स्त्रोत
सबको तृप्त करता
है सदा.

मैं ही मिथ्या दम्भ
में डूबा हुआ.
धरती पर जीवन
को दूभर कर रहा
भर रहा विष
अपनी संतति के ह्रदय
कल के जीवन को
विषैला कर रहा.