कवि भवानीप्रसाद का जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के टिगरिया ग्राम मे हुआ. 'भारत छोड़ो' आन्दोलन मे भाग लेने के कारण तीन साल जेल में रहे. वर्धा आश्रम में अध्यापक के रूप में भी काम किया. आजीवन 'गाँधी स्मारक निधि सर्व सेवा संघ से जुड़े रहे. 'बुनी हुई रस्सी' काव्य संकलन के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए. उनकी गीतफरोश कविता मुझे बहुत पसन्द है.
जी हाँ हज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ
मैं तरह तरह के गीत बेचता हूँ
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ
जी, माल देखिए, दाम बताऊँगा,
बेकाम नहीं है, काम बताऊँगा,
कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैंने
कुछ गीत लिखे हैं, मस्ती में मैंने
यह गीत सख्त सर-दर्द भुलाएगा,
यह गीत पिया को पास बुलाएगा!
जो पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझको:
पर बाद-बाद में अक्ल जगी मुझको,
जी लोगों ने तो बेच दिए ईमान,
जी, आप न हों सुनकर ज़्यादा हैरान
मैं सोच-समझकर आखिर
अपने गीत बेचता हूँ
जी हाँ हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ
मैं तरह तरह के गीत बेचता हूँ
मैं किसिम किसिम के गीत बेचता हूँ!
यह गीत सुबह का है, गाकर देखें,
यह गीत गज़ब का है, ढाकर देखें,
यह गीत ज़रा सूने में लिक्खा था,
यह गीत वहाँ पूने में लिक्खा था,
यह गीत पहाड़ों पर चढ़ जात है
यह गीत बढ़ाए से बढ़ जाता है!
यह गीत भूख और प्यास भगाता है,
जो यह मसान में भूत जगाता है,
यह गीत भुवाली की है हवा हुज़ूर
यह गीत तपेदिक की है दवा हुज़ूर
जी, और गीत भी हैं दिखलाता हूँ,
जी सुनना चाहें आप तो गाता हूँ.
जी, गीत जनम का लिखूँ मरण का लिखूँ,
जी, गीत जीत का लिखूँ शरण का लिखूँ
यह गीत रेशमी है, यह खादी का
यह गीत पित्त का है, यह बादी का
कुछ और डिज़ाइन भी हैं, यह इल्मी
यह लीजे चलती चीज नयी फिल्मी
यह सोच सोचकर मर जाने का गीत!
यह दुकान से घर जाने का गीत!
जी नहीं, दिल्लगी की इसमें क्या बात,
मैं लिखता ही तो रहता हूँ दिन-रात
तो तरह तरह के बन जाते हैं गीत,
जी, रूठ-रूठकर मन जाते हैं गीत,
जी, बहुत ढेर लग गया, हटाता हूँ,
गाहक की मर्ज़ी, अच्छा जाता हूँ,
या भीतर जाकर पूछ आइए आप,
है गीत बेचना वैसे बिल्कुल पाप,
क्या करूँ मगर लाचार
हारकर गीत बेचता हूँ.
जी हाँ हज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ
मैं तरह तरह के गीत बेचता हूँ !
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ !
7 comments:
हर तरह गीत बेचता हूँ....
बहुत खूब गीत पढ़वाया आपने मीनाक्षी जी। धन्यवाद
मीनाक्षी जी ,उलझे मनोभावों की अभिव्यक्ति को काव्य ही बेहतर समझा सकता है । साधुवाद की पात्र हैं आप ,कार्य स्तुत्य है ।
अरे मिश्र जी को कहां से ढूंढ लिया आपने और ये नया ठिकाना कब बना लिया.... पता ही नहीं चला. पढ़ कर आनंद आ गया.
सागर जी,डॉ. रूपेश जी, बहुत बहुत धन्यवाद.
संजय जी, बस एक दिन मन की भाव लहरों में बह गए और इस पड़ाव पर आ रुके. सोचा कि जो भी पढ़ेगे यहाँ अपने मित्रों के साथ बाँटॆंगे.
कवि हृदय की वेदना का सही वर्णन...
बेहद खूबसूरत
मिश्र जी की ये कविता हमने स्कूल के जमाने में पढी थी. आपके ब्लाग में इसे पढकर फिर से एक बार स्कूल के दिनों की याद ताजा हो गई
कमाल का गीत है ।
Post a Comment