आत्मावलोकन ------
" मैं हूँ मानव और
मानवता का ही वर दीजिए
मैं जिऊँ औरों को भी
जीने दूँ , सहज कर दीजिए .
प्रकृति का , हर एक
अवयव औरों को देता सदा.
ज्ञानमय आलोक देते,
आप भी सबको सदा.
धरती माँ भी अन्न के
भंडार भरती है सदा.
जल का पावन स्त्रोत
सबको तृप्त करता
है सदा.
मैं ही मिथ्या दम्भ
में डूबा हुआ.
धरती पर जीवन
को दूभर कर रहा
भर रहा विष
अपनी संतति के ह्रदय
कल के जीवन को
विषैला कर रहा.
19 comments:
मैं ही मिथ्या दम्भ
में डूबा हुआ.
धरती पर जीवन
को दूभर कर रहा
भर रहा विष
अपनी संतति के ह्रदय
कल के जीवन को
विषैला कर रहा.....
सार छुपा है इन पंक्तियों में । बहुत ज़रूरी है की हम इस बात पर विचार करें की हम अपनी आने वाली संतति को क्या देकर जा रहे हैं , तो शायद हम कुछ सार्थक बदलाव कर सकें स्वयं में । श्री नरेंद्र लाहड़ जी की रचना पढवाने के लिए आभा
.
दिव्या,काश हम समझ पाएँ और ऐसा कुछ कर जाएँ कि आने वाली पीढ़ी सदियों तक आदर्श मान कर चले..
मैं ही मिथ्या दम्भ
में डूबा हुआ.
धरती पर जीवन
को दूभर कर रहा
भर रहा विष
अपनी संतति के ह्रदय
कल के जीवन को
विषैला कर रहा
इतने सुन्दर कविता अंश पढवाने के लिये आभार.
श्री लाहड़ जी की बढ़िया रचना पढवाने के लिए आभार.
ek khubshurat rachna share karne ke liye dhanyawad..!!
पहली बार आपको पढ़ा और बहुत सुन्दर कविता पढवाने के लिए आपका आभार.
sundar aur behtreen rchna,
ek achchhi nayi shuruaat
इतने सुन्दर कविता पढवाने के लिये आभार.
बहुत सुंदर रचना है मीनाक्षी जी ।
मैं ही मिथ्या दम्भ
में डूबा हुआ.
धरती पर जीवन
को दूभर कर रहा
हमारे समय का हमारा सच । श्री नरेंद्र लाहडी जी को पढवाने का आभार ।
आत्मज्ञान की बातें। कहीं भी हितोपदेश का भाव नहीं। सहज अभिव्यक्ति से,प्रकृतिमय होने का संदेश।
श्री नरेंद्र लाहड़ जी की अर्थपूर्ण रचना पढवाने का आभार ....सतत लेखन की शुभकामनायें....
कित्ती सुन्दर कविता...खूबसूरत भाव...बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.
बहुत खूब!शुभकामनायें आपको !
इस अनुपम कृति को
पढवाने के लिए
आभार और अभिवादन स्वीकारें .
श्री लाहड़ जी की बढ़िया रचना पढवाने के लिए आभार|
मीनाक्षी जी, आपका कोई एक ब्लाग बताएं, जिसे हम फोलो कर सकें। अग्रीगेटर नहीं होने के कारण आपकी पोस्ट हम देख नहीं पाते। आपने कई ब्लाग बना रखे हैं और सभी को फोलो करना तो सम्भव नहीं है।
yah kavita padh kar manan karne ki jarurat he
" मैं हूँ मानव और
मानवता का ही वर दीजिए
बहुत सुंदर. बेहतर संदेश
आदरणीय मीनाक्षी जी -बहुत सुन्दर रचना सुन्दर आह्वान मानव से आप का -हाँ ये जग तभी सुन्दर होगा जब हम सब मिल ऐसा कुछ करें -लिखते रहिये अपने ह्रदय के उद्गार को बांटिये -
मैं हूँ मानव और
मानवता का ही वर दीजिए
मैं जिऊँ औरों को भी
जीने दूँ , सहज कर दीजिए .
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
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