Friday, September 9, 2011

'वाणी और व्यवहार'


हिन्दी सागर के इस ब्लॉग में आज तक पद्य को ही सहेजा था..आज सोचा कि गद्य के कुछ अंश भी सहेज लिए जाएँ ...सातवीं कक्षा में पढ़ाया गया एक पाठ याद आ गया...ढूँढने पर पुस्तक भी मिल गई...श्री रामानंद दोषी के लघु निबन्ध मन पर असर कर गए... निबन्ध 'वाणी और व्यवहार' में लेखक ने किसी भी सीख को रट लेने तथा उसे समझ बूझकर आचरण में सही ढंग से न उतार पाने की प्रवृति पर व्यंग्य किया है. वाणी और व्यवहार की एकरूपता पर बल दिया है.

"मुन्ना ज़ोर ज़ोर से अपना पाठ रट रहे हैं -- "क्लीनलीनेस इज़ नैक्स्ट टु गॉडलीनेस - क्लीनलीनेस इज़ नैक्स्ट टु गॉडलीनेस" पाठ सुन्दर है... हिन्दी में इस का अर्थ यह हुआ कि "शुचिता देवत्व की छोटी बहन है" मेरा ध्यान अपनी किताब से उचट कर मुन्ना की ओर लग जाता है.
पाठ याद हो गया. मुन्ना के मित्र बाहर से बुला रहे हैं. मुन्ना पैर में चप्पल डाल कर सपाटे से बाहर निकल जाते हैं. उनके खेलने का समय हो गया है.
अब कमरे में बिटिया आती हैं. भाई पर बहुत लाड़ है इनका. मुन्ना सात समुन्दर पार की भाषा पढ़ रहे हैं इसलिए भाई का आदर भी करती हैं. बिटिया अंग्रेज़ी नहीं पढ़ती.
मेज़ के पास पहुँच कर बिटिया निशान के लिए काग़ज़ लगाकर मुन्ना की किताब बन्द करती हैं; किताबों-कॉपियों के बेतरतीब ढेर को सँवारकर करीने से चुनती हैं; खुले पड़े पेन की टोपी बंद करती हैं; गीला कपड़ा लाकर स्याही के दाग़ धब्बे पोंछती हैं और कुर्सी को कायदे से रखकर चुपचाप चली जाती हैं.

मेरे सामने ज्ञान नंगा होकर खिसियाना सा रह जाता है. क्षण मात्र में सब कुछ बदल जाता है. गंभीर घोष से सुललित शैली में दिए गए अनेकानेक भाषणों में सुने सुन्दर सुगठित वाक्य कानों में गूँजने लगते हैं. मनमोहिनी जिल्द की शानदार छपाईवाली पुस्तकों में पढ़े कलापूर्ण अंश आँखों के आगे तैर जाते हैं. 

प्रवचन और अध्ययन सब बौने हो गए हैं.... आचरण की एक लकीर ने सबको छोटा कर दिया है.......

ज्ञान चाहे मस्तिष्क में रहे या पुस्तक में , वह चाहे मुँह से बखाना जाए या मुद्रण के बंदीखाने में रहे ---

आचरण में उतरे बिना विफल मनोरथ है. 


18 comments:

Smart Indian said...

यह अनुभव अक्सर होता है

रविकर said...

THANKS

tips hindi me said...

मीनाक्षी जी,
नमस्कार,
आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगसपाट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|

अजित गुप्ता का कोना said...

प्रवचन और अध्ययन सब बौने हो गए हैं.... आचरण की एक लकीर ने सबको छोटा कर दिया है.......
बहुत ही श्रेष्‍ठ पोस्‍ट।

रेखा said...

प्रभावी आलेख ...

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मीनाक्षी जी, बहुत गहरी बात कह दी आपने।

काश, इसे लोग समझ पाते।


________
आप चलेंगे इस महाकुंभ में...

...मानव के लिए खतरा।

हास्य-व्यंग्य का रंग गोपाल तिवारी के संग said...

"क्लीनलीनेस इज़ नैक्स्ट टु गॉडलीनेस - Achhi jankari

Kunwar Kusumesh said...

wonderful article.

SANDEEP PANWAR said...

दीपावली की शुभकामनाएँ

virendra sharma said...

सुन्दर प्रस्तुति .दिवाली मुबारक .

प्रेम सरोवर said...

आपका पोस्ट अच्छा लगा ।.मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

प्रेम सरोवर said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

प्रेम सरोवर said...

आपका पोस्ट मन को प्रभावित करने में सार्थक रहा । बहुत अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट 'खुशवंत सिंह' पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।

Naveen Mani Tripathi said...

ak sundar pravishti ke liye abhar menakshi ji .

प्रेम सरोवर said...

सार्थक पोस्ट । मेरे पोस्ट पर आका इंतजार रहेगा । धन्यवाद .

Asha Joglekar said...

यहां पहली बार आई पर बहुत सुंदर लेख पढने को मिला . सच ही तो है आचरण बिना ज्ञान कोरा है ।

Anu said...

बहुत बढ़िया। मैम कृपा रामानंद जी के 'बिंदु बिंदु विचार' से कुछ और विचार भी साझा करें।
धन्यवाद सहित

Shree munna chuhan said...

Munnachauhan5597@gmail.com